विदेशों से लो सबक देश-प्रेम का
ऐसे नहीं है कि मैने अपने देश की प्रगति की दिशा में कोई
बहुत बड़ा योगदान दिया हो किन्तु मुझे अपने भारत से कोई नाराजगी भी नहीं है। कई
बातें ऐसी हैं जो मुझे पसंद नहीं आती, पर मेरे जहन में मेरे देश की सदैव सकारात्मक
छवि ही रहती है। और न ही मैं भारत की निंदा को सहन कर सकती हूं। अक्सर मैने ऑफिस
में, मैट्रो में, पार्क में या कहीं भी लोगों की बातचीत के जरिए यही पाया है कि
लोग खास तौर पर हमारा युवा वर्ग तो देश से बड़ा नाखुश है। वो बात करता है देश के
भ्रष्टाचार की , वो बात करता है यहां के खराब सिस्टम की, यहां हर बात के जुगाड़ की,
यहां फैली गंदगी की-----------पर जरा सोचिए इसमें भारत की क्या खता है। देश तो
लोगों से बनता है। गलती तो हमारी है। मैने आज तक किसी को भी देश की खराब दिशा को
सही करने के लिए कुछ करने की बात कहते हुए नहीं सुना। हमारा देश यदि पहले कभी सोने
की चिड़िया कहलाता था तो वो भी यहां पर रहने वाले लोगों की वजह से। बिना लोगों के
तो देश का कोई अस्तित्व ही नहीं है। यदि हमें भारत की तुलना विदेशों से करनी ही है
तो पहले वहां के लोगों की तरह सोचना भी सीखिए। वहां जाकर देखिए कि वहां के लोग
अपने देश के प्रति, अपनी भाषा के प्रति, कितने निष्ठावान है। यहां तो लोग बड़े
फर्क से कहते हैं भई हमें हिन्दी नहीं आती। बच्चे जब घर में यह जताते है कि हमें
हिन्दी में गिन्ती नहीं आती तो हमारे तथाकथित आधुनिक माता-पिता कितना इतराते हैं।
और रिश्वत और सिस्टम का उपयोग हम ही हमारे स्वार्थ की पूर्ति करने के लिए करते
हैं। जब बात हमारे किसी अपने की आती है तब हमें कोई सच्चाई, ईमानदारी या असूल याद
नहीं आते पर दूसरों का वहीं करते देख हम बड़े-बड़े उपदेश झाड़ने लगते हैं। मन में
तो हमने दूषित विचारों की खान सजाई ही हुई है और तो और अपने घर के अलावा क्या आपने
गली, सड़क, आफिस, मैट्रो, मॉल, बाग- बगीचे, पार्क में गंदगी फैलाने का योगदान नहीं
दिया है। इतने कूड़ेदानों के आस-पास होते हुए भी कूड़ा कहां फैंकते हैं आप। यह
छोटी-छोटी बातें की आपके देश की छवि संवारेगी । विदेशों में इतनी सफाई है क्योंकि
वहां के लोग अपने देश को अपना घर ही मानते हैं दूसरों की सही बातों की चर्चा करना
अलग बात है पर कितना ही अच्छा हो कि हम उन बातों को अपने जीवन में भी उतारने की कोशिश
करें। अरे आपको विदेशों की नकल ही करनी है तो नकल कीजिए उनके देश प्रेम की, मात्र
कपड़ों की, या भाषा को लपेट कर आप क्या कर लेंगे। मेरा आप सभी से एक अनुरोध-
सिस्टम की खराबियों पर, कर तो रहे हो
तुम चर्चा
मत भूलो इस जन्म भूमि का तुम पर बड़ा है
कर्जा
संवारो इसे, निखारो इसे
अरे देश के नौजवानों तुम अब संभालो इसे
कितना भ्रष्टाचार है, गरीबी की भरमार है
बेरोजगारी की चपेट में, हर कोई लाचार है
पर देश के युवाओं तुम्हारी शिकायतों का
ही पहाड़ है
यह भारत है तुम्हारा, नकारात्मकता की
छाया से बचा लो इसे
हिन्दुस्तान में रहकर, इसी की मिटटी में
चल कर
हिन्दी से कतराकर, जिम्मेदारी से पला
झाड़कर
विदेशियों की नकल करके, स्वदेश को
भुलाकर
अब बद से बदतर तो न बनाओ इसे
विदेशों की तुम करो पूजा, उनके ही गाओ
गीत
चलो उनके ही नक्शेकदम पर , उनसे ही ले
लो सीख
रखो अपने वतन का मान मन में,
नजरों में सबके उंचा बनाओ इसे
हर चीज मांगते हो, देना भी कभी तो चाहो
अधिकारों का ढोल पीटते हो, अपने कर्तव्य
भी निभाओ
हो तुम भारत के, यही सच है न झुठलाओ इसे---------
मीनाक्षी भसीन 26-09-14© सर्वाधिकार सुरक्षित